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Post by Admin on Jul 23, 2017 5:24:23 GMT
श्रीमद्भावत्महापुराण, महामुनि श्रीव्यासदेवजी द्वारा रचित महाग्रंथ है, जिसके बारे मै कहा गया है कि "मन की शुद्धि के लिये इससे बढकर कोई साधन नहीं है, जब मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पुन्यों का उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ती होती है।" श्रीमद्भागवत की कथा तो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। कलियुग मे भागवतशास्त्र ही पढने-सुनने से तत्काल मोक्ष देने वाला महापुराण है। जिस प्रकार कोई प्यासा कुएँ के पास आकर भी प्यासा रह जाता है, भक्तिशुन्य होने पर श्रीमद्भागवत कि प्राप्ति नहीं हो पाती। भगवान हमेशा प्राणीयों पर दया दृष्टि रखते है, जिसका जैसा आचरण होता है उसे उसी दिशा के द्वारा मुक्ति तक लेजाते है, पापी प्रवृत्ती वालों को पाप द्वार, भक्तिभाव वाली प्रवृत्ती वालों को भक्ति द्वारा। सभी को अंततः मोक्ष के द्वार तक लेजाना ही भगवान का उद्देश्य होता है। परन्तु पापी प्रवृत्ती वाले प्राणीयों को बार-बार जन्म लेकर तब तक पाप करने होते है; जब तक उनके पाप का घडा पुरा ना भर जाऐ। और भक्तिभाव वाली प्रवृत्ती वालों को केवल भक्तिमार्ग पर ही चलना होता है। अतः पाठ्कों से निवेदन है, कि ईस श्रीमद्भावत्महापुराण का पुर्णतः भक्तिभाव से पठन करे। ॥ जय सियाराम ॥ bhaktidarpan.in/bhagwatji.php
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Post by Admin on Jul 23, 2017 5:25:11 GMT
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।। श्रीमद्भागवतमाहापुराण: प्रथम स्कंध: सोलहवाँ अध्याय परीक्षित् की दिग्विजय तथा धर्म और पृथ्वी का संवाद : पृष्ठ 2 स्वलङ्कृतं श्यामतूरग्ड़योजितं रथं मृगेन्द्रध्वजमाश्रितः पुरात्। वृतो रथाश्वद्विपपत्तियुक्तया स्वसेनया दिग्विजयाय निर्गतः॥11॥ वे श्यामवर्ण के घोड़े से जुते हुवे, सिंह की ध्वजा वाले, सुसज्जित रथ पर सवार होकर दिग्विजय करने के लिये नगर से बाहर निकल पड़े। उस समय रथ, हाथी, घोड़े और पैदल सेना उनके साथ-साथ चल रही थी॥11॥ bhaktidarpan.in/bhagwatji/bhagwatpuran/skandh-1/index.php?c=16&p=2
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