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Post by Admin on Jul 23, 2017 5:26:09 GMT
श्रीशिवमहापुराण में परात्पर ब्रह्म शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।
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Post by Admin on Jul 23, 2017 5:26:51 GMT
। । ॐ नमः शिवाय । । श्रीशिवमहापुराण-विद्येश्वरसंहिता: ग्यारहवाँ अध्याय शिव-लिग्ड़ की स्थापना उसके लक्षण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिव-पद की प्राप्ति कराने वाले सत्कर्मों का विवेचन : पृष्ठ 6एवं कुर्याद्यथाशक्ति क्रमाच्छिव पदं लभेत्। नित्यं रुचिकरं त्वेकं मंत्रमामरणांतिकम्।।५१।। जपेत्सहस्रमोमिति सर्वाभीष्टं शिवाज्ञया। पुष्पारामादिकं वापि तथा संमार्जनादिकम्।।५२।।इस प्रकार जो यथाशक्ति जप करता है, वह क्रमशः शिव-पद (मोक्ष) प्राप्त कर लेता है। अपनी रुचि के अनुसार किसी एक मंत्र को अपनाकर मृत्यु-पर्यन्त प्रतिदिन उसका जप करना चाहिये अथवा 'ओम् (ॐ)' मंत्र का प्रतिदिन एक सहस्त्र जप करना चाहिये। ऐसा करने पर भगवान शिव की आज्ञा से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है। जो मनुष्य भगवान शिव के लिये फुलवाड़ी या बगीचे लगाता है। bhaktidarpan.in/shivpuran/sanhitaa/vidhyeshvar-sanhitaa/index.php?c=11&p=6
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